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गीत 1 / नौवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

श्री भगवान उवाच-

कहलन श्री भगवान, भक्ति जब दोष रहित अपनैवेॅ
गोपनीय विज्ञान जानि सब दुख से मुक्ति पैवेॅ।
सठ, गुणवान के गुण नै जानै
गुण में दोष निहारै,
निन्दा करै सकल गुणि जन के
सब में दोष विचारै,
भुलियो एहन विचार राखवेॅ, बहुत कष्ट तों पैवेॅ।
मूढ़, सिद्ध-संत-साधक पर
झुट्ठा दोष लगावै,
गुण के खण्डन करै
दोष के अरु विस्तारि बतावै,
बहुत कष्ट होतोॅ, जों अनकर दोष से प्रीत लगैवेॅ।
ज्ञानी जन हमरा
हमरोॅ रहस्य सहित जानै छै,
हमरा निर्गुण-निराकार
व्यापक अनन्त मानै छै,
हमरोॅ लीला गुण प्रभाव के प्रेम सहित ऊ पावेॅ।
परम गुह्यतम विषय जगत में
ज्ञानी जन जानै छै,
दुख से मुक्ति के ज्ञानी जन
प्रथम मुक्ति मानै छै,
जानोॅ हय गुह्यतम रहस्य के, दुख के सहज दुरावोॅ
गोपनीय विज्ञान जानि सब दुख से मुक्ति पावोॅ।