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गीत 1 / बारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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अर्जुन उवाच-
उत्तम कोन योग वेत्ता छिक
अर्जुन प्रश्न करलका, केशव कोन जगत जेता छिक।
श्री भगवान उवाच-
जौने कि अनन्य प्रेम रखि भजै, निरन्तर ध्यावै
कहलावै ऊ सगुण उपासक परमेश्वर के पावै
भजै सदा निष्काम भाव से, जे इन्द्रिय जेता छिक
उत्तम वहै योग वेत्ता छिक।
अर्जुन उवाच-
जौने कि अविनाशी निर्गुण निराकार के ध्यावै
परम ब्रह्म के भजै सच्चिदानन्द रूप नित भावै
हय दोनों में के उत्तम, के उत्तम फल देता छिक
उत्तम कोन योग वेत्ता छिक।
श्री भगवान उवाच-
कहलन श्री भगवान कि मन एकाग्र सदा जे राखै
करै निरन्तर ध्यान-भजन नित और सदा शुभ भाखै
सगुण उपासक हमरा भावै, वहेॅ ब्रह्मवेत्ता छिक
अर्जुन, से जग के जेता छिक।