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गीत 21 / चौथा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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श्रद्धावान साधना परायण गूढ़ ज्ञान के पावै
पावै जे तत्काल शान्ति के सहज पंथ अपनावै।
दम्भ आचरण धरि केॅ जे
ईश्वर के नित्य भजै छै
पावै से नै ज्ञान, भक्ति बस
पूजे तलक छजै छै
करै दान जे, याचक के ऊपर से आँख दिखावै।
फल के आशा धरि केॅ
साधक सहज निराशा पावै
ध्यान रहै फल के ऊपर
नै फलित देखि उकतावै
फेर नास्तिक धरम स्वीकारी लौट भोग में आवै।
इन्द्रिय-संयम घटै
साधना में दुर्बलता आवै
जों-जों दुर्बल भेल साधना
तों-तों श्रद्धा नसावै
श्रद्धा नशै, अज्ञान तिमिर से जीव उबरि नै पावै
श्रद्धावान साधना परायण गूढ़ ज्ञान के पावै।