भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत 21 / चौथा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:17, 14 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्‍गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

श्रद्धावान साधना परायण गूढ़ ज्ञान के पावै
पावै जे तत्काल शान्ति के सहज पंथ अपनावै।

दम्भ आचरण धरि केॅ जे
ईश्वर के नित्य भजै छै
पावै से नै ज्ञान, भक्ति बस
पूजे तलक छजै छै
करै दान जे, याचक के ऊपर से आँख दिखावै।

फल के आशा धरि केॅ
साधक सहज निराशा पावै
ध्यान रहै फल के ऊपर
नै फलित देखि उकतावै
फेर नास्तिक धरम स्वीकारी लौट भोग में आवै।

इन्द्रिय-संयम घटै
साधना में दुर्बलता आवै
जों-जों दुर्बल भेल साधना
तों-तों श्रद्धा नसावै
श्रद्धा नशै, अज्ञान तिमिर से जीव उबरि नै पावै
श्रद्धावान साधना परायण गूढ़ ज्ञान के पावै।