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गीत 2 / छठा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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सहजें योगारूढ़ हुऐ ऊ परमेश्वर के मनन करै जे
प्रथम करै निष्काम कर्म अरु सहज साधना ग्रहण करै जे।
सकल कर्मफल आसक्ति के
जे जन सहजे त्यागै,
योगारूढ़ हुऐ सहजें
चित परमेश्वर में लागै
मन-बुद्धि अरु सब इन्द्रिय के नित संयम में समन करै जे।
जे कालोॅ में योगी
कर्मो से आसक्ति न लावै,
त्यागी योगारूढ़ पुरुष
इन्द्रियसुख के विसरावै,
सकल कामना त्याग करी कै, जीवन के संचरण करै जे।
हय संसार सिन्धु में योगी
खुद के स्वतः उबारै,
और अधोगति में अपना के
इन्द्रिय भोगी डारै,
मानव अपन मित्र अपने छिक, सद्विचार के ग्रहण करै जे।
जनम-जनम जब जीव
अनेकों योनी भ्रमण करै छै,
परम दयालु परमेश्वर
उनका पर कृपा करै छै,
तब पावै छै मनुष देह के, पुनि इन्द्रिय में रमण करै जे
मानव अपनोॅ शत्रु आप छै, सद्विचार नै ग्रहण करै जे।