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गीत 2 / दशम अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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प्राणी के सब भावोॅ में हम
निर्णय शक्ति, सुज्ञान वास्तविक, असम्मोहता, क्षमा, दया हम।
इन्द्रिय के वश करै के शक्ति
मन के निग्रह करै के शक्ति
दुख सुख भय अरु अभय भाव हम
समता अरु संतोष भाव हम
उत्पत्ति में और प्रलय में, जप तप दान अहिंसा में हम।
कीर्ति में अपकीर्ति में हम
कर्तव में अ कर्तव में हम
हानि लाभ हम विजय पराजय
निन्दा में स्तुति में भी हम
मान और अपमान में हम छी, हम्हीं मित्र अरु शत्रु में हम।
हमरे शुभ संकल्प से उपजल
सप्त ऋषि चारो सनकादि
छै सौंसे संसार में पूजित
स्वयंभू मनु, चौदह मनु आदि
पल-क्षण-घड़ी-दिन-मास-बरस हम, हम मनुवंतर-चतुर्युगी हम
प्राणी के सब भावोॅ में हम।