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गीत 2 / पन्द्रहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

पीपल के प्रतीक भर जानोॅ
आदि पुरुष जे मूल कहैला, उनका ससिम न मानोॅ।

ब्रह्मरूप शाखा उपशाखा नै बिचार में आवै
आदि-मध्य अरु अंत ब्रह्म के चिन्तन में न समावै
वेद पात बाहर नै डोलै, अन्तः ज्ञान बखानोॅ
पीपल के प्रतीक भर जानोॅ।

तीनों गुण जल रूप, जगत के जे निश-दिन सींचै छै
विषय भोग कोपल उपजै, बढ़ि कै नव-शाख बनै छै
विविध योनि के अन्तः पीड़ा, अन्तः से पहचानोॅ
पीपल के प्रतीक भर जानोॅ।

अहंकार-वासना-मोह, वैराग्य अस्त्र से काटोॅ
नारी-पुत्र-मकान-प्रशंसा, चित से सहज उचाटोॅ
त्यागोॅ जग के सकल भोग के, मन में मोह न आनोॅ
पीपल के प्रतीक भर जानोॅ।