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गीत 30 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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हमरोॅ परा भक्ति ऊ पावै
एकि भाव से जे सच्चिदानन्द घन के अपनावै।

जे प्रसन्न चित वाला योगी, शोक न कभी करै छै
और कभी नै कोय अपेक्षा, किनको साथ धरै छै
जे प्राणी हर हालत में समभाव सदा अपनावै
हमरोॅ परा भक्ति ऊ पावै।

बह्म भूत योगी जन जैसें ब्रह्म बुद्धि धारै छै
परा भक्ति से ऊ हम परमेश्वर के स्वीकारै छै
हम जे छी, जैसन छी, अक्षरशः ऊ समझी पावै
हमरोॅ परा भक्ति ऊ पावै।

आवि मिलै हमरा में, जौने तत्व सहित जानै छै
जे हमरा में भक्ति परायण रहि केॅ नित ध्यानै छै
कर्म योगि जन करै कर्म अरु कृपा ऊ पावै
हमरोॅ परा भक्ति ऊ पावै।

कर्म योगी जन हमर कृपा से, अविनाशी पद पावै
सब कर्मो के, जे मन से, हमरा अर्पित करि पावै
जे अवलम्बन करै हमर, हमरा में चित लगावै
हमरोॅ परा भक्ति ऊ पावै।