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गीत 34 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

सब धर्मो के त्यागि केॅ अर्जुन हमर शरण में आवोॅ
हम तोरोॅ सब पाप नसैवोॅ, सकल शोक विसरावोॅ।

वर्ण-आश्रम अरु स्वभावगत
सकल धर्म के त्यागोॅ,
सब हमरा में करोॅ समर्पा
अरु हमरा में लागोॅ,
संग-संग सब टा भोग कर्म के, करि केॅ जतन दुरावोॅ
सब धर्मो के त्यागि केॅ अर्जुन हमर शरण में आवोॅ।

खैतें-पीतें-चलते-फिरते
जे जन हमरा ध्यावै,
जे जन उठतें और बैठतें
नाम हमर नित गावै,
सोतें-जगतें भजै, वहेॅ हमरोॅ छिक हय पतियावोॅ
सब धर्मो के त्यागि केॅ अर्जुन हमर शरण में आवोॅ।

सकल शुभाशुभ कर्म के बन्धन
अपने-आप नसैतोॅ,
कर्म के बन्धन जन्म-जन्म तक
नै तोरा भरमैतोॅ,
सब टा चिन्ता शोक नशावी तों हमरा अपनावोॅ
सब धर्मो के त्यागि केॅ अर्जुन हमर शरण में आवोॅ।