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गीत 3 / दशम अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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निश्चल भक्ति योग ऊ पावै
जे जन हमरोॅ योग शक्ति के प्रेम सहित अपनावै।
हम छी वासुदेव, सम्पूर्ण जगत उद्भव के कारण
हमरे से हय जग संचालित और कर्म-निर्धारण
श्रद्धा भगति से ज्ञानि भगत जन भजन हमर नित गावै
निश्चल भक्ति योग ऊ पावै।
जे हमरा में मन लगवै छै, अर्पण प्राण करै छै
करै हमर नित भक्ति के चर्चा, नित गुणगान करै छै
रहै सदा संतुष्ट आप में, नित दिन हमरा ध्यावै
निश्चल भक्ति योग ऊ पावै।
जौने जन हम वासुदेव में हरदम रमण करै छै
परम सुहृद हमरा मानै, नित चिन्तन भजन करै छै
हमरोॅ भगत न क्षण भर भी हमरा से कभी दुरावै
निश्चल भक्ति योग ऊ पावै।