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गीत 3 / बारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

जे इन्द्रिय के वश में राखै, संयम के अपनावै
सब में जे सम-भाव रखै से योगी हमरा पावै।

मन-बुद्धि से परे
सर्वव्यापी स्वरूप के जानै,
जानै अेॅ कथनीय रूप के
अविनाशी के ध्यानै,
सदा एक रस रहै संत जे, से हमरा अति भावै।

नित्य-निरन्तर-निराकार
सच्चिदानन्द के ध्यावै,
राखै एकीभाव अचल
घट-घट में हमरा पावै
से अभिन्न हमरा से छै नै तनियों भेद बुझावै।

जे सच्चिदानन्द घन में
आसक्त-चित्त राखै छै,
जे निर्गुण अरु निराकार में
श्रम विशेष राखै छै,
जे देहाभिमान न राखै, निर्गुण के अपनावै
सब में जे समभाव रखै, से योगी हमरा भावै।