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गीत 4 / दोसर अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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अर्जुन, नाशवान जग जानोॅ।
जीवन नित्य अ तन छनभंगुर, परम सत्य हय मानोॅ।
हय अविनाशी जीव जेकर कि कोनो नास करत नै
मरत देह सौ बार, आतमा किनको हाथ मरत नै
तों रण करोॅ निचिन्त, मोन में कुछ संकोच न आनोॅ
अर्जुन, नाशवान जग जानोॅ।
अनुपयुक्त वस्तर के प्राणी जैसें त्याग करै छै
छोड़ै छै वस्तर पुरान, फिर नूतन वस्त्र धरै छै
वैसें जीवन और देह के अंतर के पहचानोॅ
अर्जुन, नाशवान जग जानोॅ।
काटि सकै नै अस्त्र, आग नै जिनका सकै जरावेॅ
जिनका जल नै सकै गलावेॅ, वायु न सकै सुखावेॅ
हय आतमा अछेद्य-अदाहक, कहि-कहि नित्य बखानोॅ
अर्जुन, नाशवान जग जानोॅ।