अर्जुन, वहेॅ धाम हमरोॅ छै
जहाँ जाय के मानव फेरो जग में नै आवै छै।
जे न प्रकाशित सूर्य-चाँद से, स्वयं प्रकाश कहावै
जे कि पवन के करै संचरित, जे अग्नि के जलावै
हमर धाम ही परम धाम, जे नित्य धाम कहवै छै
अर्जुन, वहेॅ धाम हमरोॅ छै।
जहाँ न सूरज तपै, बहै नै वायु, न चन्दा चमकै
जहाँ न दुख-भय-शोक न मृत्यु, जहाँ न आगिन लहकै
सब जीवोॅ में जीव तत्त्व हम, देह गेह हमरोॅ छै
अर्जुन, वहेॅ धाम हमरोॅ छै।
हम उद्भव पालन कर्ता छी, हम ही जगत पिता छी
हम चेतन छी, हम अनादि छी, सत्य सनातन हम छी
दोषयुक्त घर के प्राणी जैसे सब त्याग करै छै
मानव पुनरजन्म तब लै छै।