जे जन हमरोॅ भक्ति परायण
सकल कर्म हमरा अर्पित करि, करै नाम गुण गायन।
हमरोॅ देलोॅ दुख-सुख के जे पुरस्कार सन धारै
नै सुख में इतरावै अरु नै दुख में हिम्मत हारै
दोनों में सम भाव रखै, सब कुछ करि हमरा अर्पण
जे जन हमरोॅ भक्ति परायण।
सब प्राणी ‘कठपुतली’ अर्जुन, ‘सूत्रधार’ से हम छी
जीव बेचारा निमित्त मात्र छै, जगत नचावै हम छी
जे जन हय रहस्य के जानै, उनकर चित धर्मायण
जे जन हमरोॅ भक्ति परायण।
जे जन हमरा सब कुछ जानै, जे समझै सर्वेश्वर
जेकरा लेली हमरा छोड़ी जग में कोय न दोसर
हम छेकौं उनकर उद्धारक, हम नर रूप नरायण
जे जन हमरोॅ भक्ति परायण।
हय संसार सिन्धु में रहि-रहि आवै मृत्यु थपेरा
जन्म-मरण के हय लहरोॅ से पार करै छी वेरा
जे हमरा में चित रोपै, पावै भगती-अनपायण
जे जन हमरोॅ भक्ति परायण।