कृष्ण चन्द्र के तेज के जैसन सहस्र सूर्य के तेज न लागै
विश्व रूप के तेज देख केॅ चकाचौंध अर्जुन के लागै।
पाण्डु पुत्र अर्जुन विराट के
जैसें दर्शन पैलन,
पृथक-पृथक सम्पूर्ण जगत के
देख क नयन जुरैलन,
देखि अनन्त स्वरूप कृष्ण के, अब अर्जुन के अचरज लागै।
भूलल मित्र भाव
महिमा तब नारायण के जानल,
पूज्य भाव के जगतंे
चित तब कृष्ण चरण में लागल
हाथ जोरि के ठारोॅ अर्जुन श्रद्धावन्त विनीत सन लागै।
अर्जुन उवाच-
कहलन अर्जुन हे मधुसूदन
हम सब कुछ देखै छी,
हम अपने के देहोॅ में
सब देवोॅ के देखै छी,
हम सम्पूर्ण जगत-जड़-चेतन देखै छी अजगुत सन लागै।
कमल के आसन पर बैठल
हम ब्रह्मा के देखै छी,
महादेव जी के, आरो
सब ऋषिगण के देखै छी,
दिव्य सर्प वासुकी सहित सब देखौ, बड़ अद्भुत सन लागै
कृष्ण चन्द्र के तेज के जैसन सहस्र सूर्य के तेज न लागै।