भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत 5 / चौदहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खुद में सतगुण बाढ़ल जानोॅ
जब विवेक-शक्ति अन्तः में उदित भेल अनुमानोॅ।

जैसें सतगुण बढ़ै कि प्राणी तुरत भजन में लागै
जैसें जागै ज्ञान तेॅ, प्राणी महामोह से जागै
जैसें तिमिर छटै, तैसे तों अपना के पहचानोॅ
खुद में सतगुण बाढ़ल जानोॅ।

जब लागै अन्तः निर्मल सन, जानोॅ ज्ञान जागल छै
जागल ज्ञान तेॅ समझौ, खुद वैराग्य भाव उपजल छै
राग-द्वेष, दुख-शोक नशल सब, भय आलस नै मानोॅ
खुद में सतगुण बाढ़ल जानोॅ।

बढ़ै रजोगुण, लोभ बढ़ै प्राणी निज स्वारथ साधै
करतब करै सकाम भाव से, और कर्मफल बाँधै
चित चंचल, म रहै सुदृढ़ नै, आपन करम धियानोॅ
खुद में सतगुण बाढ़ल जानोॅ।