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गीत 5 / नौवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

कल्प के आरम्भ में हम जगत के रचना करै छी
अन्त में अपनोॅ प्रकृति में पूर्ण जगत समेट लै छी।
देह रहित समस्त प्राणी
आवि हमरा में मिलै छै,
फेर हमरा से निकलि के
जगत के विस्तार दै छै,
फेर हम सम्पूर्ण जग कलपान्त में समेट लै छी।
कर्म के अनुरूप हम
सब जीव के रचना करै छी,
जीव के अपनोॅ प्रकृति से
बाँधि के हरदम रखै छी,
हम मुमुक्षु जीव के अपनोॅ प्रकृति से मुक्ति दै छी।
जे सकल आसक्ति त्यागै
कर्म के करतें रहै छै,
से हमर प्रकृति से निकली
वरण हमरा करै छै,
जीव जकतें कर्म बन्धन में न हम कखनो परै छी।
हम जगत सृजक, जगत पालक
अेॅ संहारक हम्हीं,
हम जगत के मूल कर्ता
अरु अकर्ता भी हम्हीं,
हम अनासक्ति रखी के कर्म के निष्कर्ष दै छी,
कल्प के आरम्भ में हम जगत के रचना करै छी।