भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत 5 / सोलहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:42, 18 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्रवृत्ति-निवृत्ति नहिं निशिचर जानै
शुभ अरु अशुभ आचरण की छिक, दोनों के सम मानै।
नै बाहर-भीतर के शुद्धता, नै जानै सत्-भाषण
नै मानै अस्तित्व ब्रह्म के, और जगत के कारण
नारी-पुरुष संयोग जगत उद्भव के कारण मानै
प्रवृत्ति-निवृत्ति नहिं निशिचर जानै।
मनगढ़ंत श्रुति अरु पुराण के, जगत स्वनिर्मित भाषै
मिथ्या ज्ञान रखै अवलम्बन, अरु अज्ञान विकासै
सद्-स्वभाव आपन खुद नासै, और कुतर्क बखानै
प्रवृत्ति-निवृत्ति नहिं निशिचर जानै।
बुद्धि मंद अरु कुन्द रखै, स्वभाव रखै अपकारी
राखै कूट विचार जगत के खातिर अनभल कारी
भौतिक सुख के सब सुख मानै, आपन किरति बखानै
प्रवृत्ति-निवृत्ति नहिं निशिचर जानै।