भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत 6 / दोसर अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
Kavita Kosh से
सब में सतत् विराजै जौने तत्व, आतमा जानोॅ।
बिना प्राण के प्राणी के माँटी-मूरत सम मानोॅ।
मन-बुद्धि-इन्द्रिय से जेकरा
जीव न जानेॅ पारै,
धर्मगुरु-पण्डित-ज्ञानी
अतमा के मर्म विचारै
सब तर्को से परे आतमा के ईश्वर सम मानोॅ,
सब में सत्त विराजै जौने तत्व, आतमा जानोॅ।
हे अर्जुन, तों तजोॅ मोह
अरु क्षत्रिय धर्म के धारोॅ
त्यागोॅ सब टा भय संशय के
सहजे युद्ध सकारोॅ
भेॅ चुकलें उद्घोष युद्ध के, अपन धर्म पहचानोॅ,
सब में सतत् विराजै जौने तत्व, आतमा जानोॅ।
खुलल स्वर्ग के द्वार
ई अवसर भाग्यवान पावै छै
स्वतः प्रकट्य भेल हय अवसर
समय न घुरि आवै छै
पार्थ अपन दायित्व निभावोॅ, मोह न मन में आनोॅ,
सब में सतत् विराजै जौने तत्व, आतमा जानोॅ।