Last modified on 18 जून 2016, at 01:47

गीत 6 / सतरहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

अर्जुन, वहेॅ वाङ्मय तप छै
वेदशास्त्र जे पढ़ै, करै जे परमेश्वर के जप छै।

करै सदा हितकर सत् भाषण, वल्हों नै अकुलावै
नै किनको निन्दा नै चुगली, नै कटु वचन सुनावै
तीखा शब्द,न मारै ताना, नै बेमतलब गप छै
अर्जुन, वहेॅ वाङ्मय तप छै।

सरल स्वभाव शान्ति प्रिय हरदम, बोलै सुमधुर वाणी
वाणी से बनि रहल अहिंसक, शब्द-सिद्ध जे प्राणी
अध्ययन-चिन्तन-मनन करै जे, से वाचिक जप-तप छै
अर्जुन, वहेॅ वाङ्मय तप छै।

मन सम्बन्धी तप के कर्ता, हरिखत रहै हमेशा
शान्त स्वभाव, करै हरि चिन्तन, नै पालै अन्देशा
अन्तः शुद्ध करै मन निग्रह, धैने मनसा जप छै
अर्जुन, वहेॅ वाङ्मय तप छै।