गीत 7 / चौदहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
हे अर्जुन, सात्विक कर्मो के फल निर्मल सुख, ज्ञान छिकै
राजस कर्मो के फल दुख, तामस के फल अज्ञान छिकै।
सात्विक छिक निष्काम कर्म
वैराग्य सहज उपजावै,
राजस छिकै सकाम कर्म
परिणाम दुख्ख उपजावै,
तामस छिक जे बिना कर्म के फल चाहै, अज्ञान छिकै।
सतगुण के रोॅ ज्ञान
रजोगुण लोभ-लाभ उपजावै,
और तमोगुण में प्रमाद से
महामोह के पावै
सतगुण शान्ति, रजोगुण इच्छा, तम आलस्य निदान छिकै।
सतगुण धारी पुरुष
स्वर्ग सन उच्च लोक के पावै,
और रजोगुण धारी फेरो
मनुष लोक में आवै,
तमोगुणी जन पाय अधोगति, केवल नर्क निदान छिकै।
सात्विक पुरुष ऊर्ध्वगामी छिक
उत्तम लोक रचै छै,
राजस मध्यम मृत्य लोक में
बेर-बेर बिचरै छै,
तामस छिक जघन्य गुणधारी, जीवन नरक समान छिकै
हे अर्जुन, सात्विक कर्मो के फल निर्मल सुख, ज्ञान छिकै।