भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत 7 / पहिलोॅ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

केशव! हम न बनब कुलघाती
भरत मोन अपराध बोध से, रहत जरैतें छाती।

नै माधव हम लोभ से आन्हर, नै हिंसक, नै पापी
चढत्रत माथ कुल-द्रोह-पाप जब बनब व्यथित-संतापी
नाश होतजै दिन कुरु कुल के, लोग कहत उतपाती
केशव! हम न बनब कुलघाती।

सत्य-सनातन धरम जकाँ श्रुति कहै पूज्य छै नारी
कुल के होते नाश खसत कुल धरम बढ़त व्यभिचारी
बढ़त अराजकता चारो दिस, अरु उपजत अनजाती
केशव! हम न बनब कुलघाती।

मिलत न कुल के पिण्ड पितर के, पितर अधोगति पैता
कुलघाती बनि परब नरक, आगत पीढ़ी गरियैता
यै से अच्छा मरब निहत्था, उचित होतसब भाँती
केशव! हम न बनब कुलघाती।