मानी खुद के बड़का मानै
अज्ञानी सब काज के कर्ता खुद अपना के जानै।
भागै सदा मनोरथ पीछे
जग केसब सुख चाहै,
तन के गौरव धन के गौरव
जन सामर्थ्य सराहै,
असमर्थ दोसर के, समरथवान आप के मानै।
पत्नी-बेटा-धन-जमीन
अरु अप्पन महल सराहै,
खुद पुरुषारथवान बनै
आरो पुरुषारथ चाहै,
अपना के ईश्वर से कम ऐश्वर्यवान नै मानै।
जे-जे हमरोॅ शत्रु भेल
सब हमरोॅ हाथ मरैलै,
हमरा संग में बैर निमाही के
कौने सुख पैलै,
हमरा हाथे सकल सिद्धि छै, कहि कै कृति बखानै।
हम सब सुख भोगै वाला छी
हम बलवान खुशी छी,
हम न भाग-भगवान भरोसे
हम पुरुषार्थमुखी छी,
अपन बात मनबावै खातिर ठाम-ठाम हठ ठानै।
अज्ञानी जन अहंकार के
मद में चूर रहै छै,
ज्ञान और ज्ञानी दोनों से
हरदम दूर रहै छै,
खुद के कहि ऐश्वर्य के स्वामी, केकरो कुछ न गुदानै
अज्ञानी सब काज के कर्ता खुद अपना के मानै।