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गीत 8 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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सात्विक तामस अरु राजस के, हे अर्जुन पहचान जानि लेॅ
सात्विक ज्ञान धरै प्राणी, तब जीवन के उत्थान जानि लेॅ।

राजस सब जीवोॅ के जानै
अलग-अलग रूपौ में,
हरदम अपनोॅ भाव के समझै
अलग-अलग भावोॅ में
जब कि सब में एक आतमा छै, हे अर्जुन अटल मानि लेॅ
सात्विक ज्ञान धरै प्राणी, तब जीवन के उत्थान जानि लेॅ।

राजस ज्ञानोॅ के हे अर्जुन
अटल ज्ञान नै जानोॅ,
नाम मात्र के ज्ञान छिकै
है राजस के पहचानोॅ,
एक आतमा सब में वासै, एकरा फेरू से धियानि लेॅ
सात्विक ज्ञान धरै प्राणी, तब जीवन के उत्थान जानि लेॅ।

तामस केवल देह ज्ञान के
परम ज्ञान मानै छै,
आसक्ति देहे से राखै
शेष न कुछ जानै छै,
तत्त्वहीन हय क्षणिक ज्ञान के, हे अर्जुन अज्ञान मानि लेॅ
सात्विक ज्ञान धरै प्राणी, तब जीवन के उत्थान जानि लेॅ।

दैहिक सुख के जे सुख
दैहिक दुख के जे दुख मानै,
नाशवान छै हय जग जानै
खुद लेली नै मानै,
एसन में विपरीत ज्ञान के, हे अर्जुन तम ज्ञान मानि लेॅ
सात्विक ज्ञान धरै प्राणी, तब जीवन के उत्थान जानि लेॅ।