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गीत 8 / ग्यारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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तोहें ग्यारह छिकेॅ, बारह आदित्य भी तोहें
तों दोनों अश्विनि कुमार छेॅ, आठो वसु भी तोहें।
तों सुसाध्य गण, विश्वदेव तों
तों उनचास मरूत छेॅ,
तोहिं पितर-गंधर्व यक्षगण
रक्ष सिद्ध जन तों छेॅ
सब विस्मित भेॅ देख रहल छौं, कि सब कुछ छेॅ तोहें।
तोर बहुत मुख, बहुत नयन छोॅ
बहुत हाथ-जंघा छोॅ,
बहुत पैर छोॅ, बहुत उदर छोॅ
बहुत दाढ़-कंधा छोॅ,
सब जग व्याकुल भेॅ रहलोॅ छोॅ, परम भयावह तोहें।
हे विष्णो, तोहें विराट
आकाश छूय तों रहलेॅ,
तोहें सब वर्णो से युक्त छेॅ
दीप्तमान भेॅ रहलेॅ,
हम्हूँ छी बेचैन हे केशव, जग के सब कुछ तोहें
तोहें ग्यारह रूद्र छिकेॅ, बारह आदित्य भी तोहें।