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गीत 8 / चौथा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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अर्जुन उनके समझोॅ ज्ञानी
कर्म-अकर्म सदा सम समझै जग में जे-जे प्राणी।
जे अकर्म में कर्म, कर्म में जे अकर्मता जानै
से योगी सब कर्म के कर्ता स्वयं अकर्ता मानैं
से सब जानै परम तत्त्व के, वहै विज्ञ-विज्ञानी
अर्जुन उनके समझोॅ ज्ञानी।
जे सम्पूर्ण कर्म, विधि सम्मत रहि, अकाम व्रत ठानै
सकल करम जे, ज्ञान अगिन में जारि, परम सुख मानै
उनका पण्डित भी पण्डित कहि, मान करै सम्मानी
अर्जुन उनके समझोॅ ज्ञानी।
सकल कर्म, अरु कर्म के फल में, जे जन नै ओझरावै
से न पड़ै संसार चक्रम में, और परम पद पावै
फलाशक्ति से मुक्त रही, सब बन्धन काटै प्राणी
अर्जुन उनके समझोॅ ज्ञानी।