द्रष्टा, केवल हमरा जानै
तीनों गुण से परे, न कर्ता आरो केकरो मानै।
जे हमरोॅ सच्चिदानन्द घन रूप तत्त्व जानै छै
कर्म फलोॅ से पृथक, हृदय में साक्षी भाव आनै छै
अपना के नै कर्ता, अपना के न भोक्ता मानै
द्रष्टा, केवल हमरा जानै।
तीनों गुण से परे, सच्चिदानन्द एक अविकारी
जे निर्गुण अरु निराकार छै, सब जग मंगलकारी
द्रष्टा हौ सच्चिदानन्द मय, सब अग-जग पहचानै
द्रष्टा, केवल हमरा जानै।
तीनों गुण के करै उल्लंघन, देह भाव नै आनै
जनम-मरण, यौवन-वृद्ध, दुख-सुख, सब टा के सम जानै
हमरोॅ परमानन्द रूप के, से सहजे पहचानै
द्रष्टा, केवल हमरा जानै।