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गीत 9 / आठवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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ब्रह्मा जी के एक रात जब शरद पूर्णिमा आवै
जे चाहै सामीप्य भगति, से गोपि भाव के पावै।
हय जीवन के महारास
पावै ईश्वर अनुरागी,
सकल कामना, सकल भावना
सकल वासना त्यागी,
जे त्यागै सम्पूर्ण अपर सुख, से हमरा अपनावै
जे चाहै सामीप्य भगति, से गोपि भाव के पावै।
रस ही ब्रह्म छिकै
जिनकर अन्दर हय भाव जगै छै,
से वंशी के स्वर में से बाँधि केॅ
हमरोॅ कोर लगै छै,
बनै जीव शुक्लाभिशारिका, खिंचल हमर दिशा आवै
जे चाहै सान्निध्य भगति, से गोपि भाव के पावै।
झड़ै चाँदनी संग अमृत रस
और जीव नहलावै
होतें भोर फेर से ब्रह्मा
निज संसार सजावै,
फेरो ब्रह्मा महाप्रलय के बाद जगत निरमावै
जे चाहै सामीप्य भगति, से गोपि भाव के पावै।