गीत 9 / ग्यारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
हे जग निवास तों हरसोॅ
हम व्याकुल, दिगभ्रमित भेल छी, कृपा बनी तों बरसोॅ।
तोर दाढ़ विकराल, प्रलय के अग्नि समान ज्वलित तों
तोहर मुख देखि केॅ भ्रमित हम, कैलेॅ बहुत व्यथित तों
करौ कृपा देवेश, बूझि सेवक हमरा पर सरसोॅ
हे जग निवास तों हरसोॅ।
तोरे में धृतराष्ट्र-पुत्र सब-टा प्रवेश केॅ रहलोॅ
सब राजा समुदाय विलय तोरा अन्दर केॅ रहलोॅ
भीष्म-द्रोण-कर्ण सब तोरे में लय छोॅ, निष्कर्षो
हे जग निवास तों हरसोॅ।
दोनों पक्ष के सेना जे सहजें भेॅ रहल समर्पित
तोहर दाढ़ौ में सेना सुप्रधान भेल छौ अर्पित
सब विलीन तोरे में, तों नै काल बनी केॅ गरसोॅ
हे जग निवास तों हरसोॅ।
तोहर मुख विकराल, जीव सब दौड़-दौड़ आवै छोॅ
कुछ दाँतों में फँसल तेॅ कुछ सीधे प्रवेश पावै छोॅ
हम भयभीत भेल छी केशव, सहज रूप में दरसोॅ
हे जग निवास तों हरसोॅ।