भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत 9 / चौथा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:14, 14 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अर्जुन, उनके नाम विजेता
जे जीतै आपन अन्तः के, जे इन्द्रिय के जेता।
जे समस्त भोगों के त्यागै, देह करम भर जानै
ऊ गृहस्थ हो या संन्यासी, नित दिन हमरा ध्यानै
उनका सन हमरौ नै दोसर, वहेॅ हमर चहेता
अर्जुन, उनके नाम विजेता।
बिन इच्छा के प्राप्त वस्तु से जे जन तुष्ट रहै छै
बिन ईर्ष्या बिन शोक-हर्ष के, जे संतुष्ट रहै छै
सदा द्वंद्व से परे रहै जे, से जन चरितप्रणेता
अर्जुन, उनके नाम विजेता।
नै असिद्धि में हीन भाव, नै सिद्धि पावि बौरावै
सिद्धि-असिद्धि सदा सम समझी, भेद बुद्धि नै पावै
जे षड्दोष विकार रहित जन, से जन-जन के नेता
अर्जुन, उनके नाम विजेता।