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गुज़रा हुआ ज़माना अब याद क्या करें हम / हरिराज सिंह 'नूर'

गुज़रा हुआ ज़माना अब याद क्या करें हम?
उजड़े हुए चमन को आबाद क्या करें हम?

तन्हा सफ़र की सूरत ये ज़िन्दगी है अपनी,
मुश्किल में फँस गए हैं फ़रियाद क्या करें हम?

अश्कों से भर गई हैं महमिल नशीं वो आँखें,
नाकाम ख़्वाहिशों से आबाद क्या करें हम?

अफ़सोस मत करो तुम जो दिल में है, कहो वो,
सबको हमीं से शिकवा संवाद क्या करें हम?

जब क़ैद में तुम्हारी बे जुर्म के हैं तो फिर,
बोलो न ‘नूर’ ख़ुद को आज़ाद क्या करें हम?