भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुड़िया रानी हुई सयानी / सुरेश सपन

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:27, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश सपन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी गुड़िया रानी देखो-
जब से हुई सयानी,
घर भर में करती फिरती है
नई-नई शैतानी!

मम्मी जब खाना लाती है
इधर-उधर छिप जाती है
आँख बचाकर दूध-मलाई
झटपट, चट कर जाती है।
पकड़े जाने पर हँसती है,
शैतानों की नानी!


पहन के चश्मा दादी जी क
सब पर रौब जमाती है,
दादा जी की छड़ी दिखाकर
बच्चों को धमकाती है।
नहीं मानती बात किसी की,
करती है मनमानी!

पढ़ने में भी तेज बहुत है
पहला नंबर पाती है,
खेल-कूद में सबसे आगे
रहकर मेडल लाती है।
उसकी बुद्धि पर होती है
हम सबको हैरानी!