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गुनगुनी धूप-से / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

1
सर्द सोच में
गुनगुनी धूप-से
रिश्ते अनूप
बचाएँ गर्माहट
ये प्यार की आहट ।
2
नदी की धार
जल चूमते तट
फैला सीवान
पीकर हरियाली
चूम लेता आकाश ।
3
मुझसे जब
कोई दर छूटा है
भीतर छुपा
अनजानी हूक-सा
नन्हा तारा टूटा है ।
4
रिश्ते हैं डोर
बँधी मन-प्राण से
मिलता नहीं
कभी इसका छोर
ढूढ़े धरा -गगन ।
5
नीम की छाँव
जोड़ लेती है रिश्ता
उतरे जब
जीवन -पथ पर
शिखर दुपहरी ।
6
लेन-देन हो
रिश्ते बनते भार
ढोते न बने
झुक जाए कमर
जीवन हो दूभर ।