http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4_/_%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%93%E0%A4%AE_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE&feed=atom&action=historyगुप्त / हरिओम राजोरिया - अवतरण इतिहास2024-03-29T05:33:20Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4_/_%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%93%E0%A4%AE_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE&diff=256298&oldid=prevअनिल जनविजय: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिओम राजोरिया |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2018-09-30T21:11:40Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिओम राजोरिया |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
वे जब कुछ लिख रहे होते हैं<br />
लिखते-लिखते डर जाते हैं अचानक<br />
उन्हें पता है दीवारों के कान होते हैं<br />
दीवारों, दरवाज़ों, रोशनदानों से डरते हैं वे<br />
वे डरते-डरते ही काम करते हैं<br />
<br />
वे गुप्त के सरोकारों से अनुप्रेरित हैं<br />
जो जानना चाह रहे होते हैं<br />
उसे छुपकर ही जानना चाहते हैं<br />
वे गुप्त बने रहकर<br />
जायजा लेते हैं खुली चीज़ों का<br />
<br />
वे सरल-सी बातों को<br />
गूढ़ बना देना चाहते हैं<br />
बार-बार मन करता है उनका<br />
चले जाएँ दुर्गम कन्दराओं में<br />
पर हमेशा मिलते हैं खुली बसाहटों में<br />
<br />
वे गुप्त सुचनाओं का सँग्रह करते हैं<br />
पढ़ते हैं गुप्त रहस्यों से भरी पुस्तकें<br />
शरीक होते हैं गुप्त वार्ताओं में<br />
गुप्त नामों से ही लोग उन्हें पहचानते हैं<br />
स्वप्न, हँसी, दुख और अपने सरोकार<br />
बड़ी चालाकी से छुपा लेते हैं वे<br />
अकेलापन और अन्धकार<br />
कभी परेशान नहीं करता उन्हें<br />
<br />
गुप्त बने रहना<br />
नहीं है उनकी पेशागत मजबूरी<br />
वे लोभ और अज्ञान के चलते<br />
अपने आप से ही ख़ुद को छुपाते हैं<br />
जिस तरह मशगूल हैं आज अपने काम में<br />
उन्हें तो यह भी याद नहीं<br />
कि उन्होंने तो चुना ही नहीं था यह काम<br />
</poem></div>अनिल जनविजय