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गुमशुदा विचार / सुधा ओम ढींगरा

गुमशुदा विचारों ने
मन को उद्वेलित किया.....
निकल पड़ी
अनजाने सफर पर
अतीत की यादें साथ लिए!

चलते-चलते
मनोभाव
जर-जर हवेली के किवाड़ों की तरह
चरमराने लगे......
यूँ लगने लगा
जैसे तलाश है उन्हें
एक संज्ञा की!

जो उन्हें थाम सके
स्थायित्व दे सके
और............वे
उसे ओढ़ सकें
पहन सकें
ताकि
समय भी पहचान ले उन्हें
किसी मूर्तिकार की मूर्ति की तरह.....!