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गुरु समरत दीन दयाल हो / संत जूड़ीराम

गुरु समरत दीन दयाल हो दीन जान दया करो।
सकी री भौसागर दरयाव में पैरत थकौ जहान हो।
बांह पकरकै खैंचओ सो निज अपनो जान हो।
सकी री दीन जान दया करो दुविदा हरी हो भारी मर्म भगाय के।
पार पिया के मिलन को मोह मारग दियो लखाय हो।
सकी री मारग चीन्हों भक्त को पायो पद निखान हो।
बजत नगारे प्रेम के अर घूमत नाम निसान हो।
सकी री पर पूरन परमात्मा है पर पूरन धाम हो।
ज्ञान आरती साज के चली अखंडी धाम हो।
सकी री ठाकुरदास सतगुरु मिले हो नासो सकल कलेस हो।
जूड़ी अब पंखा जमे उड़ आई चारु देस हो।