भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुरू जी देखै व्हाटसएप / सन्नी गुप्ता 'मदन'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सरकारी बेतन आवत बा
काम करै या सुरती मीजै।
अपना बइठा हये छाह मा
चाहे नयी फसल कुल भीजै।
चाक उठावैक बतियै छोड़ा
इमला तलक न मुह से बोलै।
लिहे हाथ मा मोबाइल यै
यहरी वहरी दिन भै डोलै।
सरकारी गाये कै देखा यै जीवन भै दूध वगारै।
गुरु जी देखै व्हाट्सएप्प लड़के खिचड़ी कै राह निहारै।
खेती बारी घर दुवार कै
करत हये सब मिलि कै चर्चा।
नोन तेल हरदी कै जोड़ै
यही बइठ स्कूलिम ख़र्चा।
भईस दूध तूरे बा हमरो
कल्लू कै गइया बियान बा।
मैडम जी का यक दुसरेके
धोती कपड़क बड़ी घ्यान बा।
लड़के पूछै काव पढ़ी हम मैडम तब गुस्सा से मारै।
गुरु जी देखै व्हाट्सएप्प लड़के खिचड़ी कै राह निहारै।
नइकी मैडम जी कै लडक्या
स्कूली भै खूब सँवारै।
ऊ गरीब लड़केंन के कपिक
यक यक पन्ना हँसि हँसि फ़ारै।
गजब बाय स्कूलिक माया
एक नस्ल बरबाद होत बा।
फिरूँ गरीबी देखा भैवा
गउवा मा आबाद होत बा।
दिन भै लड़के पढेक नाव पै खिचड़ी कै बरतन सम्हारै।
गुरु जी देखै व्हाट्सएप्प लड़के खिचड़ी कै राह निहारै।।