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गुलमोहर हाउसिंग कॉम्प्लेक्स / सुबोध सरकार / मुन्नी गुप्ता / अनिल पुष्कर

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गुलमोहर, गुलाबख़ास, घुसने के साथ ही पाम
डेढ़ सौ परिवारों के लिए लगभग एक आवासन
जरा घुसते ही मारुती वैन, स्कूटर, साइकिल
नाम बताओ – मुसलमान, हिन्दू कितने जन?

तब ठीक-ठीक आठ बजे होंगे, नमाज खत्म हुई
घर लौट रहे हैं घर के लोग, टीवी में सीरियल
शंखध्वनि मिल गई है जंगले में गोधूलि के
पुलिस जीप खड़ी हुई गेट पर – खड़ा हुआ महाकाल ।

गुलमोहर में पुलिस घुसी – हबीब और बीना
वे लोग उस समय एक दूसरे का सहारा थे
हबीब लिखता है, बीना पढ़ाती है कॉलेज में अँग्रेज़ी
अण्डमान में उनकी शादी हुई, गोवा में हनीमून ।

एक फ़्लैट में गाने की क्लास, ग़ज़ल सुनाई देती है
सुनते हैं ग़ालिब, सुनते हैं कबीर, सुनते हैं नानक, रवि
दस-बारह लड़के-लड़कियों का बढ़िया एक स्कूल
छोटे घर में पूरा भारत, एक पूरी तस्वीर ।

एक फ़्लैट में वे रहते हैं, लिखते हैं उर्दू में
अभी वे ख़ुद किताब हैं, एक खुला पन्ना
लाहौर और अहमदाबाद वैसे नहीं है दूर
दोनों शहर अब भी उनकी दो आँखों के पत्ते हैं ।

गुलमोहर हाउसिंग में घुसने को गेट खोला
घुसती है पुलिस, उतरती है पुलिस, गले तक उतरती है शराब
आकर रुकी एक लॉरी, एक मेटाडोर
लपक कर उतरे कार-सेवक, हाथ में लोहे की रॉड ।

पुलिस जीप खड़ी रही, उतरे तेल के टिन
लगाओ तीली, जय श्री राम, हिन्दू दे सलाई
लगाओ घर में, दरवाज़ा तोड़ो, डालो पेट्रोल
जली आग, छोटी आग, आग फैलती गई ।

जय श्री राम, जय श्री राम, उड़ेल रहे हैं पेट्रोल
पुलिस अब पुलिस नहीं रही, हिन्दी गाने गाती है
इस हाथ से उस हाथ चलता है खैनी और चूना
ऐसे दिनों में खैनी जो कि खूब काम करती है ।

इस घर से उस घर - हबीब हाथ जोड़ता है
कहता है मारो, मुझे मारो, जलाओ, जल जाऊँ
मत मारो उसे, मत मारो उसे, सब मेरा दोष है
इस जले हुए हाथ से बीना का हाथ थोड़ा छूता जाऊँ ।

हाबिब जलता है बीना ज़ोर से पकड़ लेती है उसे
हाबिब जलता है, बीना अल्लाह को पुकारती है
लेकिन उठ खड़ी होती है बीना, उड़ेलो तुम लोग तेल
जलाओ देखें जलने के बाद कौन कहाँ रहता है?

यह कौन सा देश है ? आग में जलता हुआ यह किसका है हाउसिंग ?
यह कौन सा देश है ताबीज पहने बड़ा न्यायाधीश
शिलाग्रहण कर आए आइएएस ऑफिसर
इसके बाद भी चाह रहे हैं पूजा, कोर्ट में अनुमति

क्या चाहते हैं वे लोग? कौन सा देश बनाना चाहते हैं वे लोग ?
इस देश में और मुद्दे नहीं थे ? कितने लोग खा पाते हैं
देख आइए, शिक्षा नहीं, गाँव-गाँव में
अभी भी लोग माथे पर मैला ढोते हैं.

इस गाँव नहीं है पीने का पानी, उस गाँव नहीं है भात
इस गाँव नहीं है स्कूल जाने लायक कोई लड़का
इस गाँव में सिर्फ कार सेवक, उस गाँव में बजरंग
हे राम, तुम गंगातीरे कौन सा देश रच गए ।

मूल बांगला से अनुवाद : मुन्नी गुप्ता