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गुलमोहर / अरुण कुमार नागपाल

मुझसे कहीं अधिक व्यथित है
यह गुलमोहर
तुम्हारे वियोग में
अपने अनुभव से
मैंने यह जाना है
कि अक्सर निशि के तमस में
सिसकते हुए
यह तलाशा करता है
तुम्हारी परछाइयाँ
जानता हूँ
तुम नहीं लौटोगी
लेकिन याद रखना
तुम्हारी वापसी तक
क्षोभ में सिर झुकाए
हवा के थपेड़े सहता
यूँ ही
अनवरत
झरता रहेगा
हमारा गुलमोहर