http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A5%87_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%96_%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80_/_%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9&feed=atom&action=historyगुलाबी के हिस्से की भूख वाली / मृदुला सिंह - अवतरण इतिहास2024-03-28T22:03:20Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A5%87_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%96_%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80_/_%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9&diff=291723&oldid=prevसशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला सिंह |अनुवादक= |संग्रह=पोख...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2021-09-06T18:09:11Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला सिंह |अनुवादक= |संग्रह=पोख...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<p><b>नया पृष्ठ</b></p><div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=मृदुला सिंह<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=पोखर भर दुख / मृदुला सिंह<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
थोड़ी-सी जमीन कुछ मुर्गियाँ<br />
और कुछ बकरियों की मालकिन है गुलाबी<br />
बेतरतीब छप्पर वाली छानी<br />
से बहते पानी की धार<br />
जमी है उसके सूखे होठों पर<br />
सफेदी लिए<br />
<br />
वह बोलती कम है मुस्कुराती ज्यादा है<br />
यह जो ज्यादा है<br />
वही शोर है उसका<br />
कहाँ है विकास? <br />
इधर आने से रोका है किसने<br />
पुरानी धोती की तह में<br />
संजो के रखा है उसने गुलाबी कार्ड<br />
उसे नहीं पता उसके हिस्से की भूख<br />
फाइलों में दर्ज है उसी के नाम से<br />
घर की संगी है स्कूल<br />
और स्कूल की घण्टियाँ भी<br />
वहाँ से आने वाली प्रार्थनाओ के राग पर<br />
दोहरी होती गुलाबी<br />
गेहूँ की बालियों पर<br />
बगरी जाड़ों की पीली धूप है<br />
<br />
गांव की कच्ची दीवारों पर<br />
गेरूआ रंग से लिखे हैं<br />
शिक्षा अधिकार के<br />
बहुत क्रांतिकारी नारे<br />
उसकी पोती स्कूल नहीं जाती<br />
लकड़ा की पत्तियाँ औऱ फूल चुनती है<br />
कोठार नही<br />
अपना पेट भरने के लिए<br />
<br />
मोबाइल से हमने ली है<br />
उसके जीवन वितान की रंगीन तस्वीरें<br />
तस्वीरों में लकड़ा के फूल<br />
और गुलाबी हो उठे हैं<br />
माहू लगे खेतों का रंग काई हो गया है<br />
उसके आंखों में पीली नदी सोती है<br />
लाख एडिट के बाद भी उभर आईं है<br />
वे एक जोड़ा आंखें<br />
हजार आंखों की शक्ल में<br />
अनगिनत सवाल लिए स्क्रीन पर<br />
<br />
हमे लौटना ही है<br />
हम लौट रहे हैं शहर<br />
गाड़ी की रफ्तार में तेजी से पीछे छूट गए गुलाबी के गाँव से<br />
हमने चुनी हैं पीले रंग की हरियाली<br />
जुड़ी रहेगी उसकी याद<br />
हमेशा गर्भ नाल सी<br />
पोषित करती रहेगी<br />
जीवन और जीवन की विडम्बनाओं को<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५