भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गुलाबी चूड़ियाँ / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
 
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
 
 
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
 
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
 
 
सामने गियर से उपर
 
सामने गियर से उपर
 
 
हुक से लटका रक्खी हैं
 
हुक से लटका रक्खी हैं
 
 
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
 
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
 
 
बस की रफ़्तार के मुताबिक
 
बस की रफ़्तार के मुताबिक
 
 
हिलती रहती हैं…
 
हिलती रहती हैं…
 
 
झुककर मैंने पूछ लिया
 
झुककर मैंने पूछ लिया
 
 
खा गया मानो झटका
 
खा गया मानो झटका
 
 
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
 
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
 
 
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
 
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
 
 
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
 
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
 
 
टाँगे हुए है कई दिनों से
 
टाँगे हुए है कई दिनों से
 
 
अपनी अमानत
 
अपनी अमानत
 
 
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
 
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
 
 
मैं भी सोचता हूँ
 
मैं भी सोचता हूँ
 
 
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
 
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
 
 
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
 
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
 
 
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
 
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
 
 
और मैंने एक नज़र उसे देखा
 
और मैंने एक नज़र उसे देखा
 
 
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
 
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
 
 
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
 
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
 
 
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
 
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
 
 
और मैंने झुककर कहा -
 
और मैंने झुककर कहा -
 
 
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
 
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
 
 
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
 
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
 
 
वर्ना किसे नहीं भाएँगी?
 
वर्ना किसे नहीं भाएँगी?
 
 
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!
 
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!
 +
</poem>

22:14, 24 अक्टूबर 2009 का अवतरण

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वर्ना किसे नहीं भाएँगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!