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गुस्सा कर भौजी / महेश अनघ

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गुस्सा कर भौजी
कि भक्क से चूल्हा जल जाए ।

सत्त दाँव पर लगा
शाप दे दे सरकारों को,
कब तक धूप दिखाएगी
इन सड़े अचारों को
कस कर चीख़
कि घर में लगा शनीचर टल जाए ।

भैय्या को अख़बार
तुझे पढ़ना है सप्तशती
गर्म हथेली हो तब ही
खिल कर मेंहदी रचती
सुई चुभो इतनी
कि पाँव की फाँस निकल जाए ।

जिन्न उतरता नहीं
उपासे बदन पूजने से
सींग नरम हो जाते हैं क्या
बैल पूजने से
अपनी धरती देख
भाड़ में अतल वितल जाए ।

उठा बुहारी चल बैठक में
कितनी बदबू है
जाहिर होने दे जग में
तू है, तू है, तू है
इतना घूँघट खोल
कि एक गृहस्थी चल जाए ।