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गूंगे आदमी / कृष्ण वृहस्पति

उनके पास जोर था
मेरे पास कलम थी
वे जोर लगा कर थक गए
मैं लिखने से नहीं रुका।

मेरे पास खेत थे
उनके पास लठैत
मैंने खेतों में आदमी उगाए
वे उगे तो उन्होंने
सरकारी लगान के नाम पर
उनकी काट ली जुबानें !

मेरे वे गूंगे आदमी
बिके नहीं फिर
बाजार में टके सेर ही ।

अनुवाद : नीरज दइया