Last modified on 26 सितम्बर 2022, at 14:38

गूंगे आदमी / कृष्ण वृहस्पति

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:38, 26 सितम्बर 2022 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उनके पास जोर था
मेरे पास कलम थी
वे जोर लगा कर थक गए
मैं लिखने से नहीं रुका।

मेरे पास खेत थे
उनके पास लठैत
मैंने खेतों में आदमी उगाए
वे उगे तो उन्होंने
सरकारी लगान के नाम पर
उनकी काट ली जुबानें !

मेरे वे गूंगे आदमी
बिके नहीं फिर
बाजार में टके सेर ही ।

अनुवाद : नीरज दइया