Last modified on 18 फ़रवरी 2013, at 13:07

गेहूँ घर आया है(कविता) / दिविक रमेश

कर्ज का ही सही
घर आया तो है गेहूँ
गृहिणी खुश है
आज लीपा है पूरे उछाह से आँगन।

पंख से मार रहे हैं
चकला-बेलन
गृहिणी खुश है।

न सही साग-पात
गेहूँ तो आया है घर में
गृहिणी खुश है।

रगड़ लेगी नून-मिरच
थोड़ा धनिया साबुत
आज मचल उट्ठा है
सिल-बट्टा भी।

कर्ज का ही सही गेहूं
खुश हैं
गृहिणी और आदमी।

खुश घर भी है
टुक चैन तो मिलेगा
कलह से।

आज साफ है
बच्चों की नाक भी,
झाड़ू भी
मुस्करा रही है पड़ोसन-सी।

पाँव मिल गए हैं घर को
गृहिणी खुश है, आदमी भी
घर आया तो है गेहूँ।