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गोचर हे नगर के बराम्हन, पोथिया बिचारहु हे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

गोचर<ref>गोचर = प्रत्येक ग्रह अपनी-अपनी गति के अनुसार चलते हुए निश्चित काल तक किसी न किसी राशि का भोग करता है। उसकी इसी राशिगत चाल को गोचर कहते हैं। जन्मकाल में चंद्र नक्षत्र के अनुसार जिस मनुष्य की जो राशि होगी, उसके अनुसार चलते हुए सूर्यादि नक्षत्र, किसी विशेष राशि, अर्थात कुण्डली के प्रथम, द्वितीयादि स्थानों में जाने पर, जो शुभाशुभ फल देते हैं, उसी को गोचर भोग-फल कहते हैं।</ref> हे नगर के बराम्हन, पोथिया बिचारहु हे।
आजु कन्हइया जी के मूँडन<ref>मुंडन संस्कार</ref> नेओता<ref>निमंत्रण, न्योता</ref> पेठाएब<ref>भेजूँगा</ref> हे॥
अरिजनि<ref>परिजन</ref> नेओतब, बरिजनि<ref>परिजन, अर्थात् परिजन या अड़ोस पड़ोस क अन्रू लोग। बड़िजनी यानी बड़ी ननद आदि अपने से बड़े सम्बन्धी।</ref> अउरो<ref>और भी</ref> देआदिन<ref>गोतिनी, पति के भाइयों की पत्नियाँ</ref> लोग हे।
नेओतब कुल परिवार, कन्हइयाजी के मूंड़न हे॥2॥
काहे लागि रूसल<ref>रूठे</ref> गोतिया<ref>गोत्र वाले</ref> लोग, अउरो गोतिनी<ref>पति के भाइयों की पत्नियाँ</ref> लोग हे।
काहे लागि रूसले ननदिया, मँड़उआ<ref>मण्डप</ref> नहीं सोभले हे॥3॥
का<ref>क्या</ref> ले<ref>लेकर</ref> मनएबो<ref>मनाऊँगा</ref> गोतिया, का ले गोतिनी लोग हे।
अहे, का ले मनएबो ननदिया, मँड़उआ मोर सोभत हे॥4॥
बीरा<ref>बीड़ा, पान की गिलौरी</ref> मनएबो गोतिया, सेनुर<ref>सिन्दूर</ref> ले गोतिनी लोग हे।
अहे, बेसरि ले मनएबो ननदिया, मँड़उआ मोर सोभत हे॥5॥

शब्दार्थ
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