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गोपीगीत सुधामाधुरी (कुछ अंश) / कौशलेन्द्र शर्मा 'अभिलाष'

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जे पद पंकज दूर करै सब पाप अनेक महा दुख ज्वाला।
जे पद सेवक हौ अभिलाष सजे धन देवि करे नित ख्याला॥
ते पद पे तुम धेनु मझारत यो तक कूद गयौ कलि ब्याला।
ते पद पंकज दासि हृदै रख दौ तजि ताप औ पाप कसाला॥

हे मधुसूदन के पादपंकज नाम तुम्हारो जपा करते हैं।
जो न मिलै सजना को समीप तभो पग छाप छपा करते हैं॥
जो तुम धेनु पछेरन दौरत कंकड़ कंट चुभा करते हैं।
तो सब सोचि के सोचि कै बावरि नैनन नीर बहा करते है॥

साँझ हुवै तब धेनु बटोरि कै आवत गोपिन राह तकै जी।
हे मुखपंकज धेनु खुरोरज आन लदै अलका चटकै जी॥
बा मुखपंकज श्याम लटा जब मंद हँसी पर आ लटकै जी।
बा छबि छाप बिना सगरो सुख पाप समान हमैं खटकैं जी॥