भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गोया तो वचली पीपली रे / मालवी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:19, 18 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=मालवी }} <Poem> गोया तो वचली...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात


गोया तो वचली या पीपल रे वीरा जाँ चड़ जोउँ थारी वाट
माड़ी जाया चूनड़ लाया गोया तो वचली पीपल रे वीरा...

लावो तो सगला सारू लावजो रे वीरा नी तो रे रीजो हमारा देस
जामण जाया चूनड़ लावो।

संपत होय ओ आवजो रे वीरा नी तो रे रीजो तमारे देस
जामण जाया चूनड़ लावो।

संपत थोड़ो रे रिण घणो वो बेन्या पचाँ में राखूँ थारी सोब
जामण जाया चूनड़ लावो।

काँकड़ वचली या पीपली रे वीरा जाँ चड़ जोउँ थारी वाट
माड़ो जाया चूनड़ लावो।

लावो तो सगला सारू लावजो रे वीरा नी तो रे रीजो तमारे देस
जामण जाया ।

संपत थोड़ो ने रिण घणो वो बाई पचाँ में राखूँ थारी सोब
माड़ी जाई चूनड़ लावाँ।