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गौन कियो जब गौने की रैनि अली मिलि केलिनि लै ही चली है / अज्ञात कवि (रीतिकाल)

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गौन कियो जब गौने की रैनि अली मिलि केलिनि लै ही चली है ।
श्रीवृषभान ललीहि अली लै चलीँ लखि कान करी न भली है ।
सेज पै पेखि परी सी परी ज्योँ परी ही मिलीँ नलिनी की कली है ।
भैया की सौँ निरदैया बड़ो यह दैया मृनाल सी कैसी मली है ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।