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ग्राम्य जीवन / मुकुटधर पांडेय
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08:32, 1 सितम्बर 2006
रत्न जटित प्रासादों से भी बढ़कर शोभा पाते हैं
बट-पीपल की शीतल छाया फैली कैसी
है
चहुँ ओर
है
द्विजगण सुन्दर गान सुनाते नृत्य कहीं दिखलाते मोर ।
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पूर्णिमा वर्मन