भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग्रीन रूम / स्वरांगी साने

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:15, 4 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वरांगी साने |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 1.

केवल तैयार होने
के लिए बना था
ग्रीन रूम
कि
मंच पर जाते ही
परे रख सके अपने आप को।

2.

रोशनी ही रोशनी
हर कोण से आती हुई
ताकि ठीक से
देख सके
वो अपना रेशा-रेशा
दबा सके सारा द्वंद्व
भीतर ही भीतर।

3.

एक बाल
निकल रहा था चोटी से बाहर
अभी भी दिख रहा था आँखों के नीचे
कालापन
और
लाली कुछ कम लगी थी
होठों पर

ये आईना क्या दिखा रहा था उसे
और वो
क्या देखना चाह रही थी
न आईने को पता थी
इसके मन की बात
न उसे आईने की।